एक बेटी के होते हुए दूसरी बेटी अडॉप्ट करना चाह रहे हिंदुओं की राह में अब हिंदू पर्सनल लॉ नहीं आएगा। इस कानून में अभी तक समान जेंडर में अडॉप्शन की मनाही थी। यानी जिसका पहले से बेटा है उसे बेटा अडॉप्ट करने की इजाजत नहीं थी। पर इस सप्ताह बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में इस व्यवस्था को गलत ठहराया।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को चाहिए कि वे पर्सनल लॉ और सेक्युलर कानून के बीच सामंजस्य बैठाएं। उन्होंने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (हामा) पर भी लागू होता है। हामा अडॉप्शन पर पाबंदियां लगाता है, जबकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 एक सेक्युलर लॉ है जो छोड़ दिए गए बच्चों का अडॉप्शन के जरिए रिहैबिलिटेशन की इजाजत देता है।
हाई कोर्ट के फैसले से मुंबई बेस्ड एक एक्टर कपल को भी राहत मिलेगी। यह कपल खुद को गोद ली हुई एक बच्ची के लीगल पैरंट्स घोषित करने की मांग कर रहा है। उन्होंने बच्ची को चार साल पहले जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत गोद लिया था। इस कपल की दो साल की बेटी भी है। 2005 में जब उन्होंने एक साल की बेघर बच्ची को अपनाया तो अदालत ने भी उन्हें इसकी इजाजत दी थी।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस कपल के मामले को काफी गंभीरता से लिया क्योंकि यह एक ऐसा मसला था जो लोगों को अडॉप्शन के लिए आगे आने से रोकता था। उन्होंने अडॉप्शन कानूनों और संविधान पर गौर किया और यह फैसला दिया कि अडॉप्शन जीने के अधिकार से जुड़ा है। सबसे बड़ी बात कि यह छोटे बच्चों की आजादी और प्रतिष्ठा का सवाल है। वैसे भी नागरिक समाज में स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा सबसे जरूरी चीजें हैं।
क्या कहता है हिंदू अडॉप्शन एक्ट
54 साल पुराना यह कानून एक बेटे वाले पैरंट्स को दूसरा बेटा या एक बेटी के माता-पिता को दूसरी बेटी अडॉप्ट करने से रोकता है। खासकर बेटी के अडॉप्शन को इसमें बेटे की तुलना में ज्यादा सख्त बनाया गया है। अडॉप्शन चाह रहे पैरंट्स का हिंदू बेटा या पोता नहीं होना चाहिए। यहां तक कि पोते का बेटा भी नहीं होना चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट पहला ऐसा कोर्ट है जिसने दो विवादित कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की है।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को चाहिए कि वे पर्सनल लॉ और सेक्युलर कानून के बीच सामंजस्य बैठाएं। उन्होंने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट (हामा) पर भी लागू होता है। हामा अडॉप्शन पर पाबंदियां लगाता है, जबकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट-2000 एक सेक्युलर लॉ है जो छोड़ दिए गए बच्चों का अडॉप्शन के जरिए रिहैबिलिटेशन की इजाजत देता है।
हाई कोर्ट के फैसले से मुंबई बेस्ड एक एक्टर कपल को भी राहत मिलेगी। यह कपल खुद को गोद ली हुई एक बच्ची के लीगल पैरंट्स घोषित करने की मांग कर रहा है। उन्होंने बच्ची को चार साल पहले जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत गोद लिया था। इस कपल की दो साल की बेटी भी है। 2005 में जब उन्होंने एक साल की बेघर बच्ची को अपनाया तो अदालत ने भी उन्हें इसकी इजाजत दी थी।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस कपल के मामले को काफी गंभीरता से लिया क्योंकि यह एक ऐसा मसला था जो लोगों को अडॉप्शन के लिए आगे आने से रोकता था। उन्होंने अडॉप्शन कानूनों और संविधान पर गौर किया और यह फैसला दिया कि अडॉप्शन जीने के अधिकार से जुड़ा है। सबसे बड़ी बात कि यह छोटे बच्चों की आजादी और प्रतिष्ठा का सवाल है। वैसे भी नागरिक समाज में स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा सबसे जरूरी चीजें हैं।
क्या कहता है हिंदू अडॉप्शन एक्ट
54 साल पुराना यह कानून एक बेटे वाले पैरंट्स को दूसरा बेटा या एक बेटी के माता-पिता को दूसरी बेटी अडॉप्ट करने से रोकता है। खासकर बेटी के अडॉप्शन को इसमें बेटे की तुलना में ज्यादा सख्त बनाया गया है। अडॉप्शन चाह रहे पैरंट्स का हिंदू बेटा या पोता नहीं होना चाहिए। यहां तक कि पोते का बेटा भी नहीं होना चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट पहला ऐसा कोर्ट है जिसने दो विवादित कानूनी प्रावधानों की व्याख्या की है।
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