1993 में हुए मुंबई बम धमाकों के छह आरोपियों ने पिछले साल से कैदियों को दिए जाने वाले खाने में नॉनवेज को प्रतिबंधित कर दिए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि जेल में सिर्फ वेजीटेरियन खाना दिए जाने के पीछे अपने तर्क बताएं।
सरदार शाहवली खान, सलीम शेख, मोमिन कुरैशी, अली शेख ने मिलकर सरकार के उस निर्णय का विरोध किया था, जिसमें 2008 में नॉनवेज दिए जाने पर रोक लगा दी गई थी। इसे पहले नियम यह था कि जेल में मजदूरी से कमाई गए पैसे से ये कैदी जेल कैंटीन से पसंद का खाना खरीद सकते थे।
इस बारे में सुनवाई के दौरान पिछली बार भी अदालत ने अपनी नाखुशी जताते हुए कहा था कि सरकार मनमानी कर रही है। या तो कैदियों को सप्ताह में एक-दो बार नॉनवेज दिया जाना चाहिए या कैंटीन में इसका मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अब अदालत ने सरकार को कहा है कि वह 14 सितंबर तक अपने आदेश को वापस ले ले, ऐसा न करने पर अदालत ने आदेश को निरस्त करने की चेतावनी भी दे डाली है। पब्लिक प्रोसीक्यूटर पीए पोल ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया था कि जेल में एक से ज्यादा कैंटीन उपलब्ध कराना संभव नहीं है। केवल उन विदेशी कैदियों के लिए अपवाद स्वरूप अंडे, ब्रेड और बटर दिए जाते हैं जो रोटियां नहीं खाते। इस पर अदालत ने सवाल उठाया कि जब विदेशी कैदियों के लिए अपवाद स्वरूप दूसरा खाना उपलब्ध कराया जाता है तो भारतीय कैदियों के लिए क्यों नहीं।
तो कोर्ट बदल देगी फैसला
जस्टिस बिलाल नजकी ने कहा कि सरकार यदि 14 सितंबर तक अपने निर्णय को नहीं बदलती है तो कोर्ट इसे बदल देगी। इससे पहले महाराष्ट्र में जेलों के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल अशोक पाटील ने अपने एफिडेविड में कहा था कि जेलों में कई धर्म और समाज के लोग एक साथ रहते हैं और नॉनवेज परोसने से कई बार तनाव की स्थिति बन जाती है। कई बार तो इस अफवाह से ही मुश्किल हो जाती है कि दिया गया मीट गाय या सूअर का है। इसके चलते जेलों में नॉनवेज परोसना काफी खतरनाक है। इसके साथ ही यह बात कही गई कि यदि नॉनवेज खाने वालों को इसकी जेल में आपूर्ति मिलती रही तो उनका सजा काटना आसान हो जाएगा। इन सारे तर्को को दरकिनार करते हुए अदालत ने कहा कि जेल अफसरों को ट्रेनिंग दिए जाने की जरूरत है क्योंकि इस गति से तो वे कभी जेलों की हालत सुधार ही नहीं पाएंगे। कोर्ट ने इस बारे में कहा कि सरकार सुनिश्चित करे कि कैदियों को उनकी पसंद और टेस्ट का खाना मिले। यदि नॉनवेज उन्हें सप्ताह में एक-दो बार उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है तो कम से कम कैंटीन में तो इसे उपलब्ध होना ही चाहिए ताकि कैदी कमाए गए पैसे से इसे खरीदकर खा सके।
इस बारे में सुनवाई के दौरान पिछली बार भी अदालत ने अपनी नाखुशी जताते हुए कहा था कि सरकार मनमानी कर रही है। या तो कैदियों को सप्ताह में एक-दो बार नॉनवेज दिया जाना चाहिए या कैंटीन में इसका मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अब अदालत ने सरकार को कहा है कि वह 14 सितंबर तक अपने आदेश को वापस ले ले, ऐसा न करने पर अदालत ने आदेश को निरस्त करने की चेतावनी भी दे डाली है। पब्लिक प्रोसीक्यूटर पीए पोल ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया था कि जेल में एक से ज्यादा कैंटीन उपलब्ध कराना संभव नहीं है। केवल उन विदेशी कैदियों के लिए अपवाद स्वरूप अंडे, ब्रेड और बटर दिए जाते हैं जो रोटियां नहीं खाते। इस पर अदालत ने सवाल उठाया कि जब विदेशी कैदियों के लिए अपवाद स्वरूप दूसरा खाना उपलब्ध कराया जाता है तो भारतीय कैदियों के लिए क्यों नहीं।
तो कोर्ट बदल देगी फैसला
जस्टिस बिलाल नजकी ने कहा कि सरकार यदि 14 सितंबर तक अपने निर्णय को नहीं बदलती है तो कोर्ट इसे बदल देगी। इससे पहले महाराष्ट्र में जेलों के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल अशोक पाटील ने अपने एफिडेविड में कहा था कि जेलों में कई धर्म और समाज के लोग एक साथ रहते हैं और नॉनवेज परोसने से कई बार तनाव की स्थिति बन जाती है। कई बार तो इस अफवाह से ही मुश्किल हो जाती है कि दिया गया मीट गाय या सूअर का है। इसके चलते जेलों में नॉनवेज परोसना काफी खतरनाक है। इसके साथ ही यह बात कही गई कि यदि नॉनवेज खाने वालों को इसकी जेल में आपूर्ति मिलती रही तो उनका सजा काटना आसान हो जाएगा। इन सारे तर्को को दरकिनार करते हुए अदालत ने कहा कि जेल अफसरों को ट्रेनिंग दिए जाने की जरूरत है क्योंकि इस गति से तो वे कभी जेलों की हालत सुधार ही नहीं पाएंगे। कोर्ट ने इस बारे में कहा कि सरकार सुनिश्चित करे कि कैदियों को उनकी पसंद और टेस्ट का खाना मिले। यदि नॉनवेज उन्हें सप्ताह में एक-दो बार उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है तो कम से कम कैंटीन में तो इसे उपलब्ध होना ही चाहिए ताकि कैदी कमाए गए पैसे से इसे खरीदकर खा सके।
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