सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि एजुकेशन बोर्ड से मुआवजा संबंधी मामलों पर निर्णय कंज्यूमर कोर्ट में नहीं लिया जा सकता. कोर्ट ने यह फ़ैसला हजारीबाग के छात्र राजेश कुमार से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान 11 सितंबर को सुनाया है.वर्ष 1998 में राजेश ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की परीक्षा दी थी. इसमें राजेश व एक दूसरे छात्र को एक ही रोल नंबर (496) आवंटित कर दिया गया था. बाद में राजेश को मार्कशीट नहीं मिली और बोर्ड कार्यालय, पटना के चक्कर लगाते-लगाते उसका एक वर्ष बर्बाद हो गया. इसके बाद यह मामला उपभोक्ता फोरम, हजारीबाग में दर्ज कराया गया, जो सुप्रीम कोर्ट तक गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न तो बोर्ड सेवा देनेवाला (सर्विस प्रोवाइडर) संस्थान है और न ही विद्यार्थी इसका उपभोक्ता, इसलिए अंक पत्र (मार्कशीट) खो जाने या इसमें किसी त्रुटि के लिए विद्यार्थी या अभिभावक उपभोक्ता फोरम का सहारा नहीं ले सकते.सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि कोई विद्यार्थी बोर्ड की सेवा किराये पर (हायर) नहीं लेता. वह सार्वजनिक रूप से बोर्ड की परीक्षा में शामिल होने के एवज में परीक्षा फीस अदा करता है.
Friday, September 25, 2009
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