पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, September 21, 2009

क्षमा याचिकाओं पर अविलंब फैसला करे सरकारः सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फांसी की सजा पाए लोगों की दया याचिका पर बहुत ज्यादा देरी किए बिना फैसला करना सरकार का कर्त्तव्य है। कोर्ट ने कहा कि दया याचिकाओं पर कदम आगे बढ़ाने में सरकार की नाकामी उन लोगों प्रति नाइंसाफी जैसी है, जिनकी फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील हो सकती है। अपनी पुरानी व्यवस्थाओं का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर फांसी की सजा पर अमल या दया याचिकाओं के निपटारे में सरकार की ओर से काफी देरी हो तो कैदी को अपनी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कराने का अधिकार है, नहीं तो यह अनुच्छेद 21 (स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन होगा।

मध्य प्रदेश के मनसा जिले में पत्नी और पांच बच्चों की हत्या के दोषी पाए गए जगदीश नामक शख्स की मौत की सजा को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने 1971 में विवियन रॉड्रिक बनाम पश्चिम बंगाल के केस में कहा था, हमें ऐसा लगता है कि केस के निपटारे में बेहद देरी के कारण अपीलकर्ता खुद उम्रकैद की कमतर सजा पाने लायक हो जाएगा। ताजा मामले में कोर्ट ने कहा कि पहले दी गई यह व्यवस्था आज राष्ट्रपति के पास पेंडिंग 26 दया याचिकाओं को देखते हुए बेहद प्रासंगिक हो गई है। इनमें कुछ मामलों में तो अदालतों ने एक दशक से ज्यादा समय पहले फांसी की सजा सुना रखी है।

जस्टिस एच. एस. बेदी और जे. एम. पांचाल की बेंच ने फैसले में कहा,' हम संबंधित सरकारों को इन वैधानिक व संवैधानिक प्रावधानों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां याद दिलाना चाहते हैं।'

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