
अपने पूर्व के कुछ फैसलों को बदलते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बीमा कंपनियों को उस स्थिति में मुआवजा देने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता, जब उस पर कोई देनदारी नहीं बनती हो। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर बीमा कंपनी पर कोई देनदारी नहीं बनती है, तो हमारी राय में भारतीय संविधान की धारा 142 के तहत अदालत अपने न्यायिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस समय मुआवजा देने और बाद में उसे वाहन मालिक से वसूलने के प्रावधानों के तहत बीमा कंपनी पर भुगतान के लिए दबाव नहीं डाल सकती।
न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू तथा अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने एक फैसले में यह बात कही है। उच्चतम न्यायालय का यह निर्देश इस परिप्रक्ष्य में महत्वपूर्ण हो जाता है कि पीठ ने जहाँ पूर्व के कई निर्णयों से असहमति जताई, वहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस मसले को सुलझाने के लिए बड़ी पीठ के गठन की अपील की है। अपने पूर्व के कई फैसलों में उच्चतम न्यायालय ने बीमा कंपनियों को पहले दुर्घटना बीमा दावे का भुगतान करने और बाद में दुर्घटना के जिम्मेदार वाहन मालिक से इसकी वसूली का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने इस तरह का निर्देश इस वजह से दिया था क्योंकि बीमा कंपनियों ने इस आधार पर मुआवजा देने से इनकार कर दिया था कि वाहन मालिक या चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था।
पूर्व के आदेश न्यायालय ने धारा 142 के तहत दिए थे। इस धारा के अंतर्गत लोगों को न्याय दिलाने के लिए अदालत को कोई भी आदेश देने का अधिकार है।
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