बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपराध दंड संहिता की धारा 125 के तहत तिरस्कृत पत्नी को गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए किसी पुख्ता सबूत की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति अभय ओका के इस फैसले से महाराष्ट्र सरकार के अभियान को बल मिल सकता है जिसने सीआरपीसी में संशोधन का प्रस्ताव किया है ताकि उन महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल सके जो अपनी शादी की वैधता साबित करने में नाकाम रहती हैं।
न्यायामूर्ति ओका ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता सुमन को 1991 से बकाए के साथ 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता दिए जाने का निर्देश दिया। सुमन ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी शादी 1981 में निवरूत्ति सातव के साथ हुयी थी। सुमन ने आरोप लगाया कि उसके पति ने एक साल बाद ही सुरेखा नाम की महिला से दूसरी शादी कर ली और उसके साथ खराब बर्ताव करने लगा। पति ने उसे 1991 में घर से निकाल दिया। एक बच्ची की मां सुमन ने मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा भत्ता की मांग की लेकिन वह शादी का प्रमाण पेश करने में नाकाम रही। अदालत में सुनवाई के दौरान पति ने उसके साथ शादी की बात से इंकार कर दिया। सुमन ने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
न्यायामूर्ति ओका ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता सुमन को 1991 से बकाए के साथ 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता दिए जाने का निर्देश दिया। सुमन ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी शादी 1981 में निवरूत्ति सातव के साथ हुयी थी। सुमन ने आरोप लगाया कि उसके पति ने एक साल बाद ही सुरेखा नाम की महिला से दूसरी शादी कर ली और उसके साथ खराब बर्ताव करने लगा। पति ने उसे 1991 में घर से निकाल दिया। एक बच्ची की मां सुमन ने मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा भत्ता की मांग की लेकिन वह शादी का प्रमाण पेश करने में नाकाम रही। अदालत में सुनवाई के दौरान पति ने उसके साथ शादी की बात से इंकार कर दिया। सुमन ने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
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