पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट
संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकता: बालाकृष्णन
6 Comments - 19 Apr 2011
पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने संपत्ति से संबंधित सूचनाओं के गलत उपयोग बताते हुए आयकर अधिकारियों से कहा कि वह अपनी संपत्ति का खुलासा नहीं कर सकते। सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता पी बालाचंद्रन की ओर से आयरकर विभाग से बालाकृष्णन की संपत्ति की सूचना मांगने पर आयकर अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने हलफाना दाखिल किया है कि वह अपनी सम्पत्ति को ...

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संवैधानिक अधिकार है संपत्ति का अधिकार
4 Comments - 19 Apr 2011
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है और सरकार मनमाने तरीके से किसी व्यक्ति को उसकी भूमि से वंचित नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति ए के गांगुली की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि जरूरत के नाम पर निजी संस्थानों के लिए भूमि अधिग्रहण करने में सरकार के काम को अदालतों को 'संदेह' की नजर से देखना चाहिए। पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति ...

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Wednesday, September 16, 2009

गुजारा भत्ता:शादी के सबूत की आवश्यकता नहीं

बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपराध दंड संहिता की धारा 125 के तहत तिरस्कृत पत्नी को गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए किसी पुख्ता सबूत की आवश्यकता नहीं है। न्यायमूर्ति अभय ओका के इस फैसले से महाराष्ट्र सरकार के अभियान को बल मिल सकता है जिसने सीआरपीसी में संशोधन का प्रस्ताव किया है ताकि उन महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल सके जो अपनी शादी की वैधता साबित करने में नाकाम रहती हैं।
न्यायामूर्ति ओका ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता सुमन को 1991 से बकाए के साथ 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता दिए जाने का निर्देश दिया। सुमन ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी शादी 1981 में निवरूत्ति सातव के साथ हुयी थी। सुमन ने आरोप लगाया कि उसके पति ने एक साल बाद ही सुरेखा नाम की महिला से दूसरी शादी कर ली और उसके साथ खराब बर्ताव करने लगा। पति ने उसे 1991 में घर से निकाल दिया। एक बच्ची की मां सुमन ने मजिस्ट्रेट की अदालत में गुजारा भत्ता की मांग की लेकिन वह शादी का प्रमाण पेश करने में नाकाम रही। अदालत में सुनवाई के दौरान पति ने उसके साथ शादी की बात से इंकार कर दिया। सुमन ने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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