पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, September 9, 2009

दहेज हत्या के आरोप से बरी होने पर भी स्त्री के उत्पीडऩ के आरोप में हो सकती है सजा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के तहत दहेज हत्या के आरोप से बरी किए जाने के बावजूद अभियुक्त को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री के उत्पीडऩ के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के अंतर्गत सजा दी जा सकती है।
इसके साथ ही अदालत ने 17 साल पहले उन्नाव में भाभी को जलाकर मार डालने के अपराध में देवर को बरी करने के हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया। सम्पूर्ण निर्णयन्यायमूर्ति दलबीर भंडारी और हरजीत सिंह बेदी की पीठ ने कहा कि दहेज हत्या से संबंधित धारा 304-बी का संबंध विवाह के सात साल के भीतर विवाहिता की मृत्यु से है, जबकि धारा 498-ए में ऐसी कोई समय-सीमा नहीं है। धारा 498-ए के अंतर्गत स्त्री के प्रति क्रूरता के आरोप में पति या उसके रिश्तेदारों के खिलाफ किसी भी समय कार्रवाई की जा सकती है।
यह था मामला : उन्नाव में 15 मार्च 1992 को सुनीता से उसकी सास शिव प्यारी और देवर संतोष तथा रिश्ते के ससुर प्रेमनारायण ने मारपीट की थी। प्रेमनारायण के उकसावे पर संतोष ने सुनीता पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी।
उन्नाव सत्र अदालत ने सुनीता के मृत्यु पूर्व बयानों के आधार पर सभी को दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने सत्र अदालत के फैसले को उलटते हुए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया तो उप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

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