दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि न्यायाधीश भी सूचना के अधिकार के दायरे में आते हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल है। न्यायाधीश रविन्द्र भट्ट ने कहा कि जजों की ईमानदारी और सम्मान लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। न्यायाधीशों द्वारा अपनी संपत्ति की घोषणा करने से न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। भट्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का मुख्य सूचना अधिकारी जजों की संपत्ति के संबंध में मांगी गई सूचना को चार हफ्ते के अंदर मुहैया कराएंगे। उन्होंने पिछले दिनों कई उच्च न्यायालयों के द्वारा जजों की संपत्ति को घोषित करने संबंधी फैसले पर बयान देने से इनकार कर दिया।
जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट ने बुधवार को अपने 72 पेज के आदेश में कहा कि सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत देश के चीफ जस्टिस (सीजेआई) का पद सार्वजनिक पद है और मुख्य न्यायाधीश की हैसियत से संपत्ति की घोषणा से संबंधित जानकारी उनके पास रहती है। उन्होंने कहा है कि सीजेआई का ऑफिस सार्वजनिक पद होने के कारण आरटीआई कानून के प्रावधानों के दायरे में आता है।
कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से यह जानकारी देने को कहा गया था कि जज, सीजेआई को संपत्ति का ब्योरा दे रहे हैं या नहीं।
जस्टिस भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से चार सप्ताह के भीतर जानकारी मांगने वाले आवेदक सुभाष अग्रवाल को जवाब देने को कहा है। सूचना के अधिकार के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से पूछा था कि कितने जजों ने सीजेआई को संपत्ति का ब्योरा दिया है, लेकिन सीजेआई दफ्तर ने यह कहते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था कि सीजेआई संवैधानिक पद है और आरटीआई एक्ट के दायरे में नहीं आता है। इस पर आवदेक ने केंद्रीय सूचना आयोग की शरण ली थी और आयोग व सुप्रीम कोर्ट में टकराव की स्थिति के बाद मामला दिल्ली हाईकोर्ट में आया था।
इससे पहले महान्यायवादी जीई वाहनवती ने कोर्ट के सामने कहा कि जजों की संपत्ति की घोषणा होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ सकता है।
जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट ने बुधवार को अपने 72 पेज के आदेश में कहा कि सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत देश के चीफ जस्टिस (सीजेआई) का पद सार्वजनिक पद है और मुख्य न्यायाधीश की हैसियत से संपत्ति की घोषणा से संबंधित जानकारी उनके पास रहती है। उन्होंने कहा है कि सीजेआई का ऑफिस सार्वजनिक पद होने के कारण आरटीआई कानून के प्रावधानों के दायरे में आता है।
कोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से यह जानकारी देने को कहा गया था कि जज, सीजेआई को संपत्ति का ब्योरा दे रहे हैं या नहीं।
जस्टिस भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से चार सप्ताह के भीतर जानकारी मांगने वाले आवेदक सुभाष अग्रवाल को जवाब देने को कहा है। सूचना के अधिकार के क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से पूछा था कि कितने जजों ने सीजेआई को संपत्ति का ब्योरा दिया है, लेकिन सीजेआई दफ्तर ने यह कहते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था कि सीजेआई संवैधानिक पद है और आरटीआई एक्ट के दायरे में नहीं आता है। इस पर आवदेक ने केंद्रीय सूचना आयोग की शरण ली थी और आयोग व सुप्रीम कोर्ट में टकराव की स्थिति के बाद मामला दिल्ली हाईकोर्ट में आया था।
इससे पहले महान्यायवादी जीई वाहनवती ने कोर्ट के सामने कहा कि जजों की संपत्ति की घोषणा होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ सकता है।
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