उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि किसी उम्मीदवार के चयन को चुनौती देने वाली बेमतलब की याचिका को शुरूआती दौर में ही खारिज किया जा सकता है नहीं तो यह चुने गए प्रतिनिधि के मतदाताओं के प्रति कर्तव्यपालन में बाधा उत्पन्न करेगा।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि यह भी कहा कि उम्मीदवार अगर कानून का उल्लंघन करते हैं तो स्वच्छता बनाये रखने के लिए वह चुनावी विवाद में हस्तक्षेप करेगा। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 87 और दंड संहिता के आदेश चार नियम 16 और आदेश सात नियम 11 की व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को शुरूआती दौर में ही बिना किसी सुनवाई के ऐसी याचिकाओं को खारिज करने की शक्ति है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति एच एल दत्तू की पीठ ने राकांपा के हारे उम्मीदवार रामसुख की याचिका को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है। रामसुख ने 2007 के विधानसभा चुनावों में उत्तराखंड से कांग्रेस उम्मीदवार दिनेश अग्रवाल के चयन को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।
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