कानून की पढ़ाई के लिए दाखिले की अधिकतम उम्र सीमा तय करने का विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। बार काउंसिल आफ इंडिया [बीसीआई] ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर विभिन्न हाई कोर्ट में लंबित 12 याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित कर एक साथ सुनवाई करने की मांग की है। सोमवार को कोर्ट ने इस याचिका पर प्रतिपक्षियों को नोटिस जारी करते हुए हाई कोर्ट में लंबित सुनवाई पर रोक लगा दी है। ये निर्देश मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बीसीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एम.एन. कृष्णामणि की दलीलें सुनने के बाद जारी किए। कृष्णामणि का कहना था कि 12 हाई कोर्ट में एक ही मुद्दे पर याचिकाएं लंबित हैं। ऐसे में सभी मामले सुप्रीम कोर्ट मंगा कर एक साथ सुनें जाएं, ताकि एक ही मामले पर अलग-अलग फैसला नहीं आए।
बीसीआई ने गत वर्ष 14 सितंबर को प्रस्ताव पारित कर कानून की पढ़ाई में प्रवेश के लिए अधिकतम उम्र सीमा तय कर दी थी। पांच वर्ष के कोर्स के लिए बीस वर्ष [एससी-एसटी व ओबीसी के लिए 22 वर्ष] और तीन वर्ष के पाठ्यक्रम के लिए तीस वर्ष [एससी-एसटी व ओबीसी के लिए 35 वर्ष] की अधिकतम आयु सीमा तय की गई थी।
इस प्रस्ताव को विभिन्न उच्च न्यायालयों में यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि बीसीआई को ऐसा प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है। प्रस्ताव को एडवोकेट एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया गया है।
बीसीआई ने गत वर्ष 14 सितंबर को प्रस्ताव पारित कर कानून की पढ़ाई में प्रवेश के लिए अधिकतम उम्र सीमा तय कर दी थी। पांच वर्ष के कोर्स के लिए बीस वर्ष [एससी-एसटी व ओबीसी के लिए 22 वर्ष] और तीन वर्ष के पाठ्यक्रम के लिए तीस वर्ष [एससी-एसटी व ओबीसी के लिए 35 वर्ष] की अधिकतम आयु सीमा तय की गई थी।
इस प्रस्ताव को विभिन्न उच्च न्यायालयों में यह कहते हुए चुनौती दी गई है कि बीसीआई को ऐसा प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है। प्रस्ताव को एडवोकेट एक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया गया है।
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